चंडीगढ़, 5 फरवरी:
चंडीगढ़ की पुनर्वास कालोनियों में रहने वाले हजारों लोगों की उम्मीदें टूट गई हैं, जब केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि इन कालोनियों में बने घरों को मालिकाना हक नहीं दिया जाएगा। यह निर्णय लोगों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है, क्योंकि शहर के नेताओं ने कई वर्षों से यह आश्वासन दिया था कि वे इन लोगों को घरों का मालिकाना हक दिलवाएंगे।
सांसद मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को संसद में उठाया और पूछा कि क्या केंद्र सरकार चंडीगढ़ में पुनर्वास योजनाओं के तहत बने मकानों के आवंटियों को मालिकाना हक देने की योजना बना रही है। इस पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जवाब दिया कि इन योजनाओं में मालिकाना हक देने का कोई प्रावधान नहीं है।
तिवारी ने यह भी पूछा कि क्या केंद्र सरकार को चंडीगढ़ एस्टेट ऑफिस द्वारा पुनर्वास योजनाओं के तहत बने घरों के मालिकाना हक को लेकर कोई सर्वे किए जाने की जानकारी है। इसके जवाब में सरकार ने कहा कि ये मकान मुख्य रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए बनाए गए थे और इन्हें मासिक लाइसेंस शुल्क या लीजहोल्ड आधार पर आवंटित किया गया था।
उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सरकार लीजहोल्ड को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) पर लगी रोक हटाने की योजना बना रही है। इस पर मंत्री ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया। सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक 11,616 मकान वर्ष 2010-11 में बने थे, जबकि सबसे कम मकान 1994-95 में बने थे, जब केवल 5 मकान बने थे।
क्यों है यह मुद्दा?
चंडीगढ़ की पुनर्वास कालोनियों में रहने वाले लोग पिछले कई सालों से मालिकाना हक की मांग कर रहे हैं। मौजूदा नियमों के तहत, वे अपने घरों को बेच या किराए पर नहीं दे सकते, जिससे उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये मकान 40-50 साल पहले आवंटित किए गए थे और अब कई असली आवंटियों की मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में कई परिवारों के सदस्य भी नहीं हैं। यदि कोई मजबूरी में घर बेचना चाहता है, जैसे कि इलाज या अन्य कारणों से, तो वह इसे नहीं बेच सकता। हालांकि, इनमें से अधिकतर घर जीपीए के तहत बिक चुके हैं, और जो लोग इन्हें खरीदी हैं, वे भी डर के साये में जी रहे हैं क्योंकि एस्टेट ऑफिस ने हाल ही में एक सर्वे कराया था। इसमें यह पूछा गया था कि मकान में रहने वाला व्यक्ति आवंटी का रिश्तेदार क्या है।
भा.ज.पा. ने मालिकाना हक दिलाने के नाम पर दो बार मिठाई बांटी
भा.ज.पा. के नेता पिछले कई वर्षों से मालिकाना हक दिलाने का दावा करते आए हैं। पूर्व सांसद किरण खेर ने 18 अगस्त 2017 को यूटी गेस्ट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक कागज दिखाकर घोषणा की थी कि कालोनियों के लोगों को मालिकाना हक दिला दिया गया है। इस घोषणा के बाद मिठाइयां बांटी गईं और खूब नारेबाजी की गई। छह साल बाद, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण सूद ने भी दावा किया कि कालोनियों के लोगों को मालिकाना हक दे दिया गया है और इस अवसर पर पार्टी ऑफिस में मिठाइयां बांटी गईं। कई कालोनियों में इसके लिए धन्यवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें अरुण सूद को सम्मानित भी किया गया।
1980 से अब तक बने मकान:
वर्ष | मकानों की संख्या |
---|---|
1980-81 | 2,560 |
1982-83 | 996 |
1984-85 | 110 |
1985-86 | 95 |
1986-87 | 1,102 |
1987-88 | 600 |
1988-89 | 2,716 |
1989-90 | 227 |
1991-92 | 750 |
1992-93 | 6,161 |
1993-94 | 43 |
1994-95 | 5 |
2001-02 | 512 |
2002-03 | 544 |
2004-05 | 240 |
2005-06 | 608 |
2009-10 | 512 |
2010-11 | 11,616 |
2013-14 | 608 |
2018-19 | 4,960 |
कुल | 34,965 |
“यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा सरकार गरीब लोगों को धोखा दे रही है और उन्हें मालिकाना हक नहीं दे रही है, जैसा कि उन्होंने 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में वादा किया था,” – मनीष तिवारी, सांसद