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    ‘स्थिर मन सहज जीवन’ – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

    'स्थिर मन सहज जीवन' - सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

    चंडीगढ़ / पंचकूला / गुरुग्राम, 20 जनवरी:

    परमात्मा के साथ जो अपने मन को जोड़कर रखते हैं वह सदा आनंद में ही रहते हैं। वे ज्ञानी संत ब्रह्मज्ञान से युक्त होकर, परमात्मा के एहसास में भक्ति भरा जीवन बिताते हैं। ऐसे जीवन एक श्रेष्ठ और मुबारक जीवन हैं।

    यह उदगार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने रविवार को सेक्टर 29 के मैदान में आयोजित संत समागम पर व्यक्त किए।

    उन्होंने कहा कि भक्त का जीवन सांसारिक रूप में उतार-चढ़ावों से गुजरा जरूर होता है पर वह उस अवस्था को मन पर नहीं लेते। किसी हालात की वजह से अपने मन के संतुलन को नहीं खोते हैं। यह बैलेंस बना रहता है ‘स्थिर मन सहज जीवन’ इस तरह जीते हैं जहां भक्ति में पहले प्रेमाभक्ति ही होती है।

    उन्होंने कहा कि हर किसी के हिस्से यह जीवन आ सकता है। हर कोई मोक्ष, मुक्ति, साल्वेशन का हकदार बन सकता है। जीते जी ही इस परमात्मा की ओर रूझान लगा कर यह ब्रहमज्ञान की दात से अपने जीवन को भक्तिमय बनाया जा सकता है।

    मनुष्य केवल एक तन रूप से या आकार रूप से ही नहीं बल्कि भावों से, सोच से, व्यवहार से इस मन मे हर समय परमात्मा को बसा कर मनुष्य होने का प्रमाण दिया जाए।

    उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि छोटा बच्चा यदि तोतली जुबान में बोलता है तो सबको अच्छा लगता है। परंतु वही यदि बड़ा होने के बाद भी तोतली जुबान में बोलता जाए तो चिंता का विषय बनता है। डॉक्टर का सहारा लेकर उसे सही बोलने के लिए प्रेरित किया जाता है। बाल्य काल में तो तोतली जुबान ठीक थी मगर उम्र के बढ़ते ही सुधार होना चाहिए।

    बाबा हरदेव सिंह जी महाराज अक्सर कहा करते थे कि बातचीत तो दो-चार वर्षो में सीख लेते हैं मगर यह सीखने में काफी अर्सा लग जाता है कि कहां किस बात को करना है, किस भाव से करना है और वाणी मधुर हो।

    एक अन्य उदाहरण देते हुए कहा कि बच्चे को क्रिकेट कोचिंग लेते वक्त शुरुआती शॉट पर शाबाशी मिलती है मगर वहीं रुकना नहीं होता बल्कि आगे बढ़कर बड़े अच्छे शॉट भी खेलने होते हैं। बैट को अच्छे तरीके से कैसे पकड़ा जाए, टाइमिंग को कैसे ठीक किया जाए। जिस दिशा में चाहते हो कि खेला जाए उस दिशा के लिए कैसे बैट को पकड़ना है। समय पाकर स्किल डिवेलप हो जाना चाहिए।

    सतगुरु माताजी ने समझाया कि आध्यात्मिक रूप में जहां से शुरुआत हुई, क्या अभी तक भी वही खड़े हैं या आगे भी बढ़े हैं, आज भी वही है या गहराई में उतरे हैं, वहीं अटके हुए हैं या इस असीम विस्तार की ओर जा रहे हैं। विस्तार की बात तो चेतन अवस्था में रहकर ही होगी। स्वभाव के सुधार के लिए पूरे विवेक से चेतन होकर जीना होगा वरना तो यह आयु भी बढ़ती रहेगी, ये स्वासें भी घटती जाएंगी।

    उन्होंने समझाया कि हम एक पूरा समुन्द्र होने के बावजूद भी एक कतरा भी नहीं ले पाए। हमारा असली रूप मूल यह निराकार, यह परमात्मा है। हर एक इन्सान के अन्दर दैवीय रूप, रूहानी बात है। हर एक में आत्मा इस परमात्मा का ही अंश तो स्वयं जो परमात्मा का रूप हो सकते हैं।

    हम इन्सान कितने छोटे दायरों में अभी भी बंटे हुए हैं अपने दिमाग को, अपनी सोच को कितना छोटा कर रखा है। नफरतों के कारण ढूंढ रहे हैं, किसी से जाति पाति या कोई भी कारण ढूंढ कर, नफरत करते जा रहे हैं। नफरतों के कारण इन्सान खुद बना लेता है और खुद के अन्दर वो नफरत के कारण खुद को श्रेष्ठ मानकर अपने ही अन्दर अंहकार भर लेता है।

    सतगुरु माता जी ने कहा कि कोई भी धर्म ग्रन्थ पढ़ लें, किसी भी सन्त की वाणी सुन लें। इन्सान को इन्सान तो यह मानवीयता ही बनाती है, मानवीय गुण ही बनाते हैं। किसी भी हयूमैन वैल्यूज़ में ये बुरे विकार नहीं हैं, जब भी सुनेंगे करूणा, दया, विशालता, प्रीत, नम्रता, प्यार आदि ही सुनाया जाएगा।

    आज के सत्संग में विशेष तौर पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का स्वागत, अभिनंदन और आशीर्वाद प्राप्त करने गुरुग्राम के विधायक मुकेश शर्मा एवं उनकी टीम, पार्षद, उद्योगपति. समाजसेवी और अति विशिष्ट लोग उपस्थित हुए। अनेक गणमान्य सज्जनो ने उपस्थित होकर सतगुरु माता जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।

    सत्संग में हजारों का मानव परिवार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी के दिव्य दर्शन एवं संदेश से आनंदित होने के लिए समागम मैदान में मौजूद रहा। सेक्टर 29 जिमखाना क्लब का मैदान खचाखच भरा रहा और यहां पर आए श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता था।

    गुरुग्राम की संयोजक निर्मल मनचंदा ने सतगुरू माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी, साध संगत और स्थानीय विधायक और अन्य सभी प्रशासनिक विभागों आदि का धन्यवाद किया।

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