मनाली (हिमाचल प्रदेश), 13 जनवरी:
हिमाचल प्रदेश के मनाली क्षेत्र के कई गांवों में इस मकर संक्रांति से एक अनूठी परंपरा शुरू हो रही है, जिसमें ग्रामीण 42 दिनों तक कड़े धार्मिक नियमों का पालन करेंगे। इस दौरान, ग्रामीणों को टीवी, डीजे, मोबाइल फोन, और अन्य मनोरंजन साधनों से पूरी तरह से दूर रहना होगा। यह अवधि उन गांवों में लागू होगी, जहां लोग धार्मिक नियमों का पालन करने के लिए अपनी दैनिक दिनचर्या को बदलने के लिए तैयार हैं।
सिमसा गांव में कर्तिक स्वामी मंदिर के कपाट मकर संक्रांति के दिन बंद हो जाएंगे, जबकि गौशाल गांव में कंचन नाग, ब्यास ऋषि और गौतम ऋषि के मंदिर भी पूजा के बाद बंद किए जाएंगे। इस दौरान, 42 दिनों तक इन गांवों के लोग बिना किसी शोर-शराबे और आधुनिक मनोरंजन के साधनों के जीवन यापन करेंगे।
गौशाल गांव और आसपास के नौ गांवों में इस नियम का पालन किया जाएगा, जिसमें टीवी, रेडियो, डीजे, और अन्य शोर-शराबा पूर्णत: बंद रहेगा। इस अवधि के दौरान, गांववाले मनोरंजन के सभी साधनों से दूर रहेंगे। इसके अलावा, कृषि कार्य और गोशाला से गोबर निकालने पर भी प्रतिबंध रहेगा।
यह परंपरा इस मान्यता से जुड़ी हुई है कि 14 जनवरी से गांव के आराध्य देव तपस्या में लीन हो जाएंगे। मकर संक्रांति पर देवता की मूर्ति पर कपड़े से मिट्टी का लेप लगाया जाएगा, और पूजा के बाद मंदिर के कपाट बंद किए जाएंगे। इस दौरान देवता को शांति और विश्राम की आवश्यकता होती है, ताकि वे अपनी तपस्या में समर्पित हो सकें।
गांवों में इस समय मोबाइल फोन भी साइलेंट मोड में रहेंगे, और किसी भी प्रकार का शोर-शराबा करने पर रोक रहेगी। यह परंपरा नौ गांवों में लागू होगी, जिनमें गौशाल, कोठी, सोलंग, पलचान, रुआड़, कुलंग, शनाग, बुरुआ और मझाच गांव शामिल हैं। हरि सिंह, जो देवता के कारदार हैं, ने पुष्टि की कि इस अवधि के दौरान मोबाइल फोन साइलेंट पर रहेंगे और शोर करने की अनुमति नहीं होगी।
सिमसा गांव के कर्तिक स्वामी मंदिर के कपाट भी मकर संक्रांति पर बंद होंगे, और इस दौरान 12 फरवरी तक सिमसा, कन्याल, छियाल, मढ़ी, रांगडी सहित आसपास के गांवों में किसी भी प्रकार का शोर, गाना बजाना, डीजे व मिट्टी खोदाई पर प्रतिबंध रहेगा।
12 फरवरी को फागली उत्सव के दौरान मंदिर के कपाट खुलेंगे, और इस दिन देवता भविष्यवाणी भी करेंगे। इस दिन देवता के कपाट खोलते ही उनके द्वारा भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी की जाएगी।
धार्मिक मान्यता और स्थानीय विश्वास
यह परंपरा ग्रामीणों के लिए गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता रखती है। माना जाता है कि देवता को शांति और विश्राम की आवश्यकता होती है ताकि वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर सही तरीके से ध्यान केंद्रित कर सकें। इस दौरान, गांववाले अपने जीवन को देवता के आदेशों के अनुसार बदलते हैं और शांति बनाए रखते हैं।
ग्रामीणों के लिए यह 42 दिन एक गंभीर अनुशासन का समय होता है, जब वे अपने दैनिक जीवन को धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार जीते हैं।