पंजाब, 18 दिसंबर:
पंजाब पर बढ़ता कर्ज राज्य सरकार के लिए गंभीर चिंता का कारण बन गया है। हालांकि, कर्ज को नियंत्रित करने के लिए सरकार विभिन्न कदम उठा रही है, लेकिन ये प्रयास अब तक पर्याप्त साबित नहीं हो पाए हैं।
ऋण-जीएसडीपी अनुपात के मामले में पंजाब देश में दूसरे स्थान पर है। राज्य का यह अनुपात 47.6% है, जबकि पंजाब पर कुल 3.51 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इससे आगे केवल अरुणाचल प्रदेश है, जिसका ऋण-जीएसडीपी अनुपात 50.4% है। यह आंकड़े भारतीय रिजर्व बैंक की 2023-24 की रिपोर्ट में सामने आए हैं, जिसे केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में प्रस्तुत किया।
आय के नए स्रोत विकसित करने की जरूरत
2019-20 में पंजाब पर कुल कर्ज 2.29 लाख करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 3.51 लाख करोड़ रुपये हो गया। राज्य की वित्तीय स्थिति और राजकोषीय घाटे को सुधारने के लिए सरकार नई योजनाओं पर कार्य कर रही है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को अपने राजस्व स्रोत बढ़ाने के साथ-साथ मुफ्त योजनाओं पर नियंत्रण रखना होगा। इससे ही पंजाब कर्ज के दबाव से बाहर आ सकता है।
1986 में पंजाब को कैश सरप्लस राज्य माना जाता था, लेकिन चुनावी वादों के तहत दी जाने वाली मुफ्त योजनाओं ने राज्य की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया। चाहे वह अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार हो, कांग्रेस का शासनकाल हो या वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार, यह संकट कम नहीं हो सका। पिछले पांच वर्षों में ही राज्य पर कर्ज में 34% की वृद्धि हुई है।
बिजली सब्सिडी बनी बड़ी चुनौती
राज्य सरकार के सामने बिजली सब्सिडी एक प्रमुख आर्थिक चुनौती बनकर उभरी है। प्रत्येक कनेक्शन पर 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का चुनावी वादा तो सरकार ने पूरा कर दिया, लेकिन इसके चलते सरकारी खजाने पर सालाना 20-22 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ रहा है। 16वें वित्त आयोग की बैठक में भी सरकार को बिजली सब्सिडी के वैकल्पिक समाधान पर काम करने की सलाह दी गई थी।
अगर राज्य अपनी वित्तीय योजनाओं को सही दिशा में ले जाए और राजस्व बढ़ाने के उपायों पर ध्यान दे, तो कर्ज के इस दुष्चक्र से बाहर निकलने की संभावना बन सकती है।