छत्तीसगढ़, 13 फरवरी:
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 (बलात्कार) या धारा 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। अदालत ने धारा 375 के अपवाद 2 का हवाला देते हुए कहा कि जब तक पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं होती, तब तक पति के खिलाफ बलात्कार का मामला नहीं बनता।
अदालत का तर्क
न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने गोरखनाथ शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि संशोधित धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। इसलिए, पति-पत्नी के बीच यदि कोई यौन कृत्य अप्राकृतिक भी हो, तो वह धारा 377 के तहत अपराध नहीं होगा।
अदालत ने कहा, “धारा 375, 376 और 377 IPC के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा 375 IPC की संशोधित परिभाषा के अनुसार, पति-पत्नी के बीच धारा 377 के तहत अपराध की कोई जगह नहीं है और इसलिए इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता… यदि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ कोई अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित किया जाता है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।“
इस कानूनी व्याख्या के आधार पर हाईकोर्ट ने गोरखनाथ शर्मा की दोषसिद्धि को पलट दिया, जिन्हें निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला आरोपी की पत्नी की मृत्यु से जुड़ा था, जिन्हें पति द्वारा किए गए कथित अप्राकृतिक कृत्य के बाद तेज दर्द हुआ और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बाद में उनकी मृत्यु हो गई।
मृत्यु से पहले, पीड़िता ने अपने बयान में कहा था कि पति द्वारा किए गए अप्राकृतिक यौन कृत्य के कारण वह बीमार हो गई। इसी बयान के आधार पर निचली अदालत ने आरोपी को IPC की धारा 375, 377 और 304 के तहत दोषी करार दिया था।
हालांकि, हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान यह सामने आया कि कुछ गवाह अपने बयान से पलट गए थे। इसके अलावा, कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिन्होंने मृतका का बयान दर्ज किया था, ने अदालत में स्वीकार किया कि पीड़िता ने मौखिक रूप से पति के जबरदस्ती किए गए अप्राकृतिक यौन कृत्य का उल्लेख किया था, लेकिन यह बयान रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया था।
हाईकोर्ट का फैसला
शर्मा के वकील ने दलील दी कि दोषसिद्धि केवल मृतका के बयान पर आधारित थी, जिसकी प्रामाणिकता संदिग्ध थी। उन्होंने यह भी बताया कि दो गवाहों ने अदालत में कहा था कि मृतका प्रसव के बाद बवासीर से पीड़ित थी, जिससे गुदा से रक्तस्राव और पेट में दर्द होता था।
वहीं, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि निचली अदालत का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर था और इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
सभी तर्कों और कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने के बाद, हाईकोर्ट ने धारा 375 और 377 का अवलोकन किया और कहा, “यह स्पष्ट है कि धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा में किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में लिंग का प्रवेश शामिल है, जिसके लिए सहमति की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में, पति-पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध को धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।”
इसके अलावा, अदालत ने कहा, “यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है, तो पति द्वारा उसके साथ किया गया कोई भी यौन कृत्य बलात्कार नहीं माना जाएगा। ऐसे में, अप्राकृतिक यौन कृत्य के लिए पत्नी की सहमति का कोई महत्व नहीं रह जाता, इसलिए यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 376 और 377 के तहत अपराध सिद्ध नहीं होता।“
मृतका के बयान पर संदेह जताते हुए अदालत ने कहा, “इस अदालत द्वारा मृतका के बयान की सावधानीपूर्वक जांच करने के बाद यह पाया गया कि यह दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि इसे अन्य किसी साक्ष्य से समर्थन नहीं मिला है। इसलिए, मृतका के बयान की सत्यता पर संदेह है।“
IPC की धारा 304 के तहत दोषसिद्धि पर, हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि इस धारा के तहत दोषसिद्धि का कानूनी आधार क्या है। अदालत ने कहा, “धारा 304 के तहत दोषसिद्धि अनुचित और अवैध है।”
अंतिम निर्णय
इन निष्कर्षों के आधार पर, हाईकोर्ट ने शर्मा की अपील स्वीकार कर ली और उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया।