चंडीगढ़, 1 मार्च:
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें पति की याचिका पर पत्नी को क्रूरता का दोषी मानते हुए तलाक की मंजूरी दी गई थी। अदालत के अनुसार, पत्नी ने अपने पति पर परिवार से अलग रहने का दबाव बनाया और उसे अपमानित किया, जो मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है।
इस मामले में पारिवारिक न्यायालय ने तलाक का निर्णय सुनाते हुए कहा था कि पत्नी का व्यवहार अनुचित था, क्योंकि उसने पति को परिवार से दूर रहने के लिए मजबूर किया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया।
क्रूरता के आरोपों पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति सुधीर सिंह और न्यायमूर्ति सुखविंदर कौर की पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी पक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों को साक्ष्यों द्वारा सिद्ध करना आवश्यक होता है। यदि किसी व्यक्ति का आचरण उसके जीवनसाथी के लिए साथ रहना असहनीय बना देता है, तो इसे क्रूरता माना जा सकता है।
पति का दावा: क्रूरता के कारण पिता ने की आत्महत्या
पति ने अदालत में तर्क दिया कि 2018 में विवाह के बाद से ही पत्नी उस पर अपने परिवार से अलग होने का दबाव डालने लगी थी। इसके अलावा, वह ससुरालवालों के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग करती थी और उन्हें परेशान करती थी। पति के अनुसार, इस मानसिक प्रताड़ना के चलते उसके पिता ने आत्महत्या कर ली। हालांकि, इस मामले में पत्नी और उसके पिता को कानूनी रूप से दोषमुक्त कर दिया गया था।
अदालत ने साक्ष्यों की समीक्षा के बाद पाया कि भले ही पत्नी और उसके पिता को आत्महत्या के मामले में धारा 306 और 34 आईपीसी के तहत दर्ज आरोपों से बरी कर दिया गया था, फिर भी पत्नी ने अपने बचाव में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।
अदालत का अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पति द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि पत्नी का व्यवहार क्रूरता की श्रेणी में आता है। वहीं, पत्नी की ओर से इस दावे को खारिज करने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया गया। इसलिए, पारिवारिक न्यायालय द्वारा दिए गए तलाक के फैसले को बरकरार रखा गया।