चंडीगढ़, 12 फरवरी:
तीन साल की बेटी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक व्यक्ति को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद कहा कि अपराध के समय आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ था।
मामले का विवरण
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 2011 में आरोपी की पत्नी ने उसे अपनी तीन वर्षीय बेटी का गला घोंटते हुए देखा और रोकने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं रुका। आरोपी का मानना था कि उसकी बेटी एक “डायन” है और उसके बेटे को नुकसान पहुंचा सकती है। इस विश्वास के चलते उसने बच्ची के सिर पर तवे से वार किया, जिससे उसकी मौत हो गई। घटना के बाद वह मौके से फरार हो गया था।
पंचकूला की एक अदालत ने 22 मार्च 2013 को उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ अपील दायर की।
मानसिक बीमारी का आधार
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उसका मुवक्किल गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित था और उसे अपनी हरकतों का कोई एहसास नहीं था। अदालत में प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयानों के आधार पर यह साबित हुआ कि आरोपी पिछले दो वर्षों से मानसिक भ्रम (डिल्यूजन) और मतिभ्रम (हेल्यूसिनेशन) से ग्रस्त था।
परिवार ने उसे डॉक्टर के पास ले जाने के बजाय तांत्रिक के पास झाड़-फूंक के लिए भेजा था। गिरफ्तारी के बाद आरोपी को मानसिक चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी मनोवैज्ञानिक बीमारी (साइकोसिस) की पुष्टि की।
हाईकोर्ट का फैसला
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 84 का हवाला देते हुए कहा कि मानसिक विकार से ग्रसित व्यक्ति को अपराध की जिम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अपराध के लिए व्यक्ति का मानसिक रूप से अपराध करने की स्थिति में होना आवश्यक है, लेकिन आरोपी की मानसिक स्थिति ऐसी थी कि वह सही और गलत के बीच फर्क समझने में सक्षम नहीं था।
इस आधार पर हाईकोर्ट ने उसे बरी कर दिया और जेल की बजाय मानसिक अस्पताल में भर्ती कराने का आदेश दिया।