पंजाब, 6 फरवरी:
पंजाब के युवाओं का विदेश बसने का सपना अब कई परिवारों के लिए एक दुखद हकीकत बन चुका है। हाल ही में 104 भारतीय नागरिकों, जिनमें से अधिकतर पंजाब से थे, को अमेरिका से निर्वासित कर दिया गया। ये युवा उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद लेकर घर से निकले थे, लेकिन अब हथकड़ियों में लौटे हैं, जिससे उनके परिवार कर्ज, दुख और अनिश्चितता में डूब गए हैं।
दर्दनाक वापसी: खुशी नहीं, आंसुओं से किया गया स्वागत
बुधवार को एक विशेष अमेरिकी एयरफोर्स विमान अमृतसर पहुंचा, जिसमें वे निर्वासित युवक शामिल थे, जिन्होंने अवैध रास्तों से अमेरिका जाने की कोशिश की थी। जिन माता-पिता ने अपने बच्चों की सफलता की उम्मीद की थी, वे अब उन्हें हथकड़ियों में देखकर टूट चुके हैं। कई माता-पिता एयरपोर्ट के बाहर खड़े थे, आंखों में आंसू लिए अपने बेटों को देखने के लिए।
“हमने उसके भविष्य के लिए जमीन बेची, अब कुछ नहीं बचा”
मोहाली के 21 वर्षीय प्रदीप सिंह को अमेरिका भेजने के लिए उसके परिवार ने 42 लाख रुपये खर्च किए, यहां तक कि अपनी आधी जमीन भी बेच दी। लेकिन मात्र 10 दिन बाद ही वह पकड़ा गया और वापस भेज दिया गया। उसकी मां, जो अपने चेहरे को आंचल से ढककर रो रही थीं, बोलीं:
“हमने सबकुछ कुर्बान कर दिया ताकि वह विदेश जाकर अच्छा जीवन जी सके। अब हम नहीं जानते कि आगे कैसे जिएंगे। सरकार को उसे यहीं नौकरी दिलाने में मदद करनी चाहिए।”
उसके पिता, जो खुद एक किसान हैं, ने कहा:
“अगर हमें पहले पता होता कि ऐसा होगा, तो हम यही पैसा अपने यहां कोई बिज़नेस शुरू करने में लगाते।”
“मेरा बेटा सिर्फ 20 दिन बाहर रहा, लेकिन हमने 50 लाख खो दिए”
फतेहगढ़ साहिब के एक परिवार ने अपने बेटे को अमेरिका भेजने के लिए 50 लाख रुपये खर्च किए। वह अक्टूबर में निकला और जनवरी में अमेरिका पहुंचा, लेकिन मात्र 20 दिन बाद ही निर्वासित होकर लौट आया। उसके पिता, जो एक छोटे किसान हैं, अब सदमे में हैं और इस नुकसान के बारे में कुछ भी कहने में असमर्थ हैं।
खतरनाक सफर: दलालों के जाल में फंसे युवा
इन युवाओं में से अधिकांश ने अमेरिका तक पहुंचने के लिए अवैध रास्ते अपनाए। एजेंटों को 40-50 लाख रुपये देने के बावजूद, उन्हें जानलेवा परिस्थितियों का सामना करना पड़ा—घने जंगलों में छिपना, कई दिनों तक भूखा रहना, और रेगिस्तानों में पैदल चलना। लेकिन अंत में, वे अमेरिका की सीमा पर पकड़े गए और वापस भेज दिए गए।
फतेहगढ़ साहिब के जसविंदर सिंह ने अमेरिका जाने के लिए 45 लाख रुपये खर्च किए। उसे मैक्सिको के रास्ते अमेरिका में घुसाने की योजना थी, लेकिन उसे सीमा पर पकड़ लिया गया और निर्वासित कर दिया गया। अब उसका पिता, जो एक छोटी डेयरी की दुकान चलाता है, कर्ज के बोझ तले दब चुका है।
“एजेंट ने वीजा का वादा किया, लेकिन जंगलों के रास्ते भेज दिया”
टांडा के हरविंदर सिंह को भी ऐसी ही धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा। उसकी पत्नी, कुलजिंदर कौर ने बताया कि एक एजेंट ने उनसे 42 लाख रुपये लिए और कानूनी वीजा दिलाने का भरोसा दिया। लेकिन इसके बजाय, उनके पति को लैटिन अमेरिका के खतरनाक रास्तों से अमेरिका भेजा गया। वहां पकड़े जाने के बाद उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया और फिर निर्वासित कर दिया गया। अब उनके पास न पैसा बचा है, न कोई सहारा।
कर्ज में डूबे परिवार, खत्म होती उम्मीदें
अमृतसर के स्वर्ण सिंह ने अपने बेटे आकाशदीप सिंह को अमेरिका भेजने के लिए 65 लाख रुपये खर्च किए—जमीन बेचकर और कर्ज लेकर। आकाशदीप दुबई और मैक्सिको होते हुए अमेरिका जाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे सीमा पर पकड़ लिया गया और वापस भेज दिया गया।
“हमें उसे विदेश भेजने के अलावा कोई चारा नहीं दिखा। यहां नौकरियां नहीं हैं। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा,” स्वर्ण सिंह ने रोते हुए कहा।
बड़ी समस्या: पंजाब के युवा इतनी बड़ी जोखिम क्यों उठा रहे हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब के युवा इसलिए विदेश जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें भारत में कोई भविष्य नहीं दिखता। खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रही, और नौकरियां भी सीमित हैं। इसके अलावा, वे अपने रिश्तेदारों की सफल विदेश यात्रा की कहानियों से प्रभावित होते हैं और किसी भी कीमत पर वहां जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
किसान यूनियन की नेता सुखविंदर कौर कहती हैं:
“डॉलर और रुपये के बीच भारी अंतर ही इसका मुख्य कारण है। परिवार सोचते हैं कि अगर उनके बच्चे विदेश चले जाएं, तो वे अच्छा कमा लेंगे। लेकिन वे अवैध प्रवास के खतरों को नहीं समझते।”
दलालों का जाल: मजबूरी का फायदा उठाने वाले एजेंट
फर्जी एजेंट इन लाचार परिवारों को निशाना बनाते हैं और झूठे वादे कर लाखों रुपये वसूलते हैं। कई युवा डिटेंशन सेंटर्स में महीनों तक फंसे रहते हैं, उनके दस्तावेज छीन लिए जाते हैं, और उनका पैसा भी लूट लिया जाता है। कुछ लोग तो इस दौरान हिंसा और भुखमरी का भी शिकार होते हैं।
“अगर यहां नौकरियां होतीं, तो हमारे बेटे अपनी जान जोखिम में नहीं डालते”
पटियाला के चमरू गांव के सरपंच लखविंदर सिंह का मानना है कि सरकार को अब ठोस कदम उठाने होंगे।
“अगर पंजाब में रोजगार के बेहतर अवसर होते, तो ये युवा इतनी खतरनाक यात्राएं न करते। सरकार को इस संकट को रोकने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी।”
आगे क्या? सरकार से मदद की गुहार
अब परिवार पंजाब सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार फर्जी एजेंटों पर सख्त कार्रवाई करे और निर्वासित युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए। अगर इन्हें मदद नहीं मिली, तो वे कर्ज और निराशा के भंवर में फंस जाएंगे।
निष्कर्ष: पंजाब के लिए एक चेतावनी
इन युवाओं की दर्दनाक कहानियां पंजाब में एक गंभीर संकट की ओर इशारा करती हैं। विदेश बसने का सपना अब कई परिवारों को बर्बादी की ओर ले जा रहा है। जब तक भारत में रोजगार और अवसर बेहतर नहीं होते, यह सिलसिला जारी रहेगा—नए सपने, नए कर्ज, और अंत में, फिर वही बर्बादी।