चंडीगढ़, 31 जनवरी:
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163A के तहत मुआवजा पाने के लिए गलती या लापरवाही साबित करने की जरूरत नहीं होगी। यह निर्णय “नो-फॉल्ट लायबिलिटी” सिद्धांत को मजबूत करता है, जिससे दावे का निपटारा बिना दोष निर्धारण के किया जा सकता है।
यह फैसला जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कीर्ति सिंह की पीठ ने एक मामले में सुनाया, जिसमें सड़क के बीच में बिना किसी चेतावनी संकेत के खड़े एक ट्रैक्टर के कारण हुई दुर्घटना पर विचार किया गया था।
अदालत ने प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करते हुए कहा कि धारा 163A के तहत दावे के लिए वाहन चालक की गलती साबित करने की आवश्यकता नहीं होती। मुआवजा तय करने के लिए अधिनियम के दूसरे अनुसूची में दिए गए संरचित फॉर्मूले का पालन किया जाता है, जो अन्य सड़क दुर्घटना मुआवजा मामलों से अलग है। इस धारा के तहत “मल्टीप्लायर मेथड” का उपयोग नहीं किया जाता, जो आमतौर पर दीर्घकालिक नुकसान का आकलन करने के लिए अपनाया जाता है।
इसके अलावा, अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 140 के तहत वाहन मालिक को अनिवार्य रूप से मुआवजा देना होगा, क्योंकि यह धारा बिना किसी दोष निर्धारण के जिम्मेदारी तय करती है।
बीमा कंपनी द्वारा उठाई गई आपत्तियों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यदि चिकित्सा खर्चों के समर्थन में वैध बिल प्रस्तुत किए जाते हैं, तो उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि पहले से ही “नो-फॉल्ट” सिद्धांत के तहत मुआवजा दिया जा चुका है, तो अन्य धाराओं के तहत किए गए किसी भी अतिरिक्त दावे को उसके अनुसार समायोजित किया जाएगा।
इस कानूनी सिद्धांत को लागू करते हुए, हाईकोर्ट ने पीड़ित को मुआवजा दिए जाने के निर्णय को बरकरार रखा और बीमा कंपनी की आपत्तियों को खारिज कर दिया। यह फैसला मोटर वाहन अधिनियम के उद्देश्य—दुर्घटना पीड़ितों को न्यायसंगत और उचित मुआवजा दिलाने—को सुदृढ़ करता है और इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करता है।