हिमाचल प्रदेश, 28 जनवरी:
चंडीगढ़ की विशेष सीबीआई अदालत ने 2017 के बहुचर्चित गुड़िया रेप और मर्डर केस से जुड़े सूरज सिंह कस्टोडियल डेथ मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए पुलिस के आठ कर्मियों, जिनमें तत्कालीन आईजी जहूर हैदर जैदी भी शामिल हैं, को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
कोर्ट ने विशेष जांच टीम (एसआईटी) को दोषी ठहराते हुए कहा कि उन्होंने जांच के दौरान सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और आरोपी से कबूलनामा लेने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। नेपाली मूल के मजदूर सूरज सिंह की हिरासत में पुलिस प्रताड़ना के कारण मौत हो गई थी।
नार्को टेस्ट में हुआ खुलासा
पुलिस ने शुरुआत में दीपक उर्फ दीपू को आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया था, लेकिन नार्को टेस्ट में पता चला कि उससे जबरदस्ती और यातना के जरिए झूठा कबूलनामा लिया गया। 25 जुलाई 2017 को दो गवाहों की मेडिकल जांच में यह साबित हुआ कि उनके शरीर पर 7 से 10 दिन पुराने चोटों के निशान थे।
सूरज सिंह की पत्नी ममता देवी ने भी गवाही दी कि हिरासत के दौरान उनके पति को बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई।
साक्ष्यों के आधार पर दोषी करार
मामले में अभियोजन पक्ष ने कुल 52 गवाह और 198 सबूत कोर्ट में पेश किए। सीबीआई ने एसआईटी के खिलाफ 22 जुलाई 2017, 25 नवंबर 2017, 10 फरवरी 2018 और 31 दिसंबर 2019 को चार्जशीट दाखिल की। 26 मार्च 2019 को आरोप तय किए गए और 1 जुलाई 2019 से कोर्ट में साक्ष्य पेश करने की प्रक्रिया शुरू हुई।
लगभग साढ़े सात साल बाद, 27 जनवरी 2025 को अदालत ने सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
क्या था गुड़िया रेप और मर्डर केस
4 जुलाई 2017 को शिमला जिले के कोटखाई में 16 वर्षीय छात्रा लापता हो गई थी। कुछ दिनों बाद उसका निर्वस्त्र शव तांदी के जंगल में मिला। इस घटना ने पूरे हिमाचल प्रदेश को झकझोर दिया था। तत्कालीन आईजी जहूर हैदर जैदी की अगुवाई में गठित एसआईटी ने इस मामले में सात लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें सूरज भी शामिल था।
पुलिस हिरासत के दौरान सूरज की मौत ने मामले को और भी विवादित बना दिया। इस पर जनता के भारी आक्रोश के बाद जांच को सीबीआई को सौंपा गया।
एसआईटी पर लगे गंभीर आरोप
सीबीआई ने एसआईटी के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 330 (कबूलनामा लेने के लिए चोट पहुंचाना), 331, 348, 323, 326, 218, 195, 196, 201 और 210बी के तहत मामला दर्ज किया।
आईजी जहूर हैदर जैदी, डीएसपी मनोज जोशी, सब-इंस्पेक्टर राजिंद्र सिंह, एएसआई दीप चंद शर्मा, हेड कांस्टेबल मोहन लाल, सूरत सिंह, रफी मोहम्मद और कांस्टेबल रनीत सतेता के खिलाफ आरोप सिद्ध हुए। जांच में यह सामने आया कि सूरज की मौत सीधे तौर पर पुलिस प्रताड़ना का नतीजा थी।
यह फैसला हिरासत में हिंसा और पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और हिमाचल प्रदेश को झकझोर देने वाले इस मामले में न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।