मुक्तसर (पंजाब), 14 जनवरी:
पंजाब के श्री मुक्तसर साहिब में स्थित एक कब्र ऐसी है जो हर साल माघी मेले में लोगों के आक्रोश का केंद्र बन जाती है। इस कब्र पर श्रद्धालु जूते-चप्पल बरसाते हैं। पहली नजर में यह अजीब जरूर लगता है, लेकिन इस परंपरा के पीछे छिपा है इतिहास का एक ऐसा किस्सा, जिसे जानकर हर कोई हैरान रह जाता है।
क्या है इस कब्र का इतिहास?
यह कब्र मुगल जासूस नूरदीन की है, जिसे गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं मौत के घाट उतारा था। इतिहास के अनुसार, नूरदीन दिल्ली और सरहिंद के शासकों का गुप्तचर था। उसने सिख योद्धा का भेष धरकर गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ रहने का नाटक किया। वह गुरु जी पर हमला करने के मौके की तलाश में था।
जब गुरु गोबिंद सिंह जी मुक्तसर के खिदराने की ढाब (अब श्री मुक्तसर साहिब) पहुंचे, तो नूरदीन ने पीछे से उन पर वार करने की कोशिश की। यह घटना तब हुई जब गुरु जी सुबह दातुन कर रहे थे। नूरदीन ने तलवार से वार किया, लेकिन गुरु साहिब ने अपनी फुर्ती से इस हमले को नाकाम कर दिया। उन्होंने पास रखे लोहे के बर्तन (गड़वे) से नूरदीन पर प्रहार किया और वहीं उसे खत्म कर दिया।
जूते मारने की परंपरा का कारण
गुरु गोबिंद सिंह जी ने नूरदीन को उसी स्थान पर दफना दिया था। तब से लेकर आज तक, सिख श्रद्धालु माघी मेले के दौरान इस कब्र पर आते हैं और जूते-चप्पल बरसाते हैं। यह परंपरा नूरदीन के पापों और गुरु साहिब पर किए गए हमले के प्रयास के लिए सजा स्वरूप जारी है।
बार-बार बनती है कब्र
हर साल माघी मेले के दौरान श्रद्धालु इस कब्र को गिरा देते हैं। इसके बावजूद इसे फिर से बनाया जाता है। यह प्रक्रिया वर्षों से चली आ रही है और आज भी श्रद्धालु अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए इस कब्र पर जूते-चप्पल मारते हैं।
श्रद्धालुओं के लिए विशेष स्थान
नूरदीन की यह कब्र श्री दरबार साहिब से लगभग ढाई किलोमीटर दूर गुरुद्वारा दातणसर के पास स्थित है। माघी मेले में आने वाले श्रद्धालु इस स्थान पर जरूर आते हैं। यहां आकर श्रद्धालु गुरु गोबिंद सिंह जी के साहस को याद करते हैं और अपने सम्मान के प्रतीक स्वरूप नूरदीन की कब्र पर जूते मारते हैं।
ऐतिहासिक धरोहर और सिख परंपरा
इस स्थान की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता आज भी कायम है। यह घटना न केवल गुरु गोबिंद सिंह जी के साहस और सतर्कता की गवाही देती है, बल्कि सिख परंपरा में गुरु साहिब के प्रति श्रद्धा और शत्रुता के खिलाफ न्याय का प्रतीक भी है।
माघी मेला और नूरदीन की कब्र का यह ऐतिहासिक प्रसंग सिख इतिहास और परंपराओं की एक अनोखी झलक प्रस्तुत करता है।