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    जस्टिस शेखर कुमार यादव के सांप्रदायिक बयान पर विवाद; INDIA गठबंधन महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में

    जस्टिस शेखर कुमार यादव के सांप्रदायिक बयान पर विवाद; INDIA गठबंधन महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में

    प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), 11 दिसंबर:

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए एक बयान ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है, जिसके बाद उनके खिलाफ महाभियोग की मांग उठने लगी है। कांग्रेस पार्टी ने इस जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए एक अभियान शुरू किया है, और कई सांसदों का समर्थन भी इस प्रस्ताव के पक्ष में जुटाया है।

    कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद और वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस यादव के उस बयान की आलोचना की है, जो उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिया था। सिब्बल का कहना है कि यह बयान न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह मामला इतना गंभीर है कि इसे संसद के शीतकालीन सत्र में महाभियोग प्रस्ताव के रूप में उठाया जाना चाहिए। सिब्बल ने यह भी बताया कि राज्यसभा के 30 से अधिक सांसदों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में समर्थन दिया है।

    जस्टिस यादव का यह विवादित बयान रविवार को दिया गया था, जो कई लोगों द्वारा पक्षपाती और राजनीतिक रूप से प्रेरित माना जा रहा है। बयान के बाद राजनीतिक और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा त्वरित कार्रवाई की मांग की गई है।

    कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि संसद में महाभियोग नोटिस जल्द ही पेश किया जाएगा, और यदि कोई जज सार्वजनिक बयान देता है जो उनके पद की शपथ का उल्लंघन करता है, तो यह न्यायिक नैतिकता और स्वतंत्रता के खिलाफ है।

    भारत के संविधान के अनुसार, हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया काफी कठोर है। इसे शुरू करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक है। इसके बाद, प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर के पास भेजा जाता है, जो इसे प्रारंभिक जांच के लिए एक समिति को सौंपता है। इस समिति में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, और एक कानूनी विशेषज्ञ शामिल होते हैं। अगर जांच समिति आरोपों को सही पाती है, तो प्रस्ताव संसद में लाया जाता है, जिसे पारित करने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो यह राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जिनकी मंजूरी के बाद संबंधित जज को पद से हटा दिया जाता है।

    भारत में अब तक किसी भी हाईकोर्ट के जज को महाभियोग प्रक्रिया के तहत हटाया नहीं गया है, लेकिन इस बार स्थिति अलग हो सकती है।

    जहां तक जजों के आचार संहिता का सवाल है, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जजों के लिए कोई लिखित आचार संहिता नहीं है, लेकिन उन्हें अपनी स्थिति के अनुरूप आत्म-अनुशासन बनाए रखने की उम्मीद होती है, खासकर जब वे सार्वजनिक बयान देते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज शाहजीत यादव का कहना है कि हालांकि कोई लिखित आचार संहिता नहीं है, लेकिन जजों को यह अच्छी तरह से समझ होता है कि उनके पद की गरिमा बनाए रखने के लिए कब और कहां बोलना उचित है।

    विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, और यह जांच आगामी सप्ताहों में की जाएगी।

    राजनीतिक और कानूनी मोर्चे पर बढ़ता हुआ विवाद अब इस बात का संकेत देता है कि भारतीय न्यायपालिका के आचार और आचरण पर एक गंभीर बहस छिड़ने वाली है।

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