हिमाचल प्रदेश, दिसंबर 6:
हिमाचल प्रदेश में नई पंचायतों के गठन की प्रक्रिया तेज हो गई है, लेकिन राज्य की 412 पंचायतों में अभी तक स्थायी पंचायत सचिव और तकनीकी सहायक की तैनाती नहीं हो पाई है। इन पंचायतों की स्थापना 2020 में हुई थी, जब भाजपा सरकार थी, लेकिन अब तक इन पंचायतों में स्थायी ग्राम रोजगार सहायकों और पंचायत चौकीदारों की भी नियुक्ति नहीं की गई है। इन पंचायतों के अधिकांश में पंचायत घर की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है।
प्रदेश की मौजूदा कांग्रेस सरकार के दो साल के कार्यकाल के बाद भी कर्मचारियों की कमी बनी हुई है, और यदि नई पंचायतों का गठन होता है, तो यह नागरिकों के लिए सुविधा के बजाय असुविधा का कारण बन सकता है। वर्तमान में, एक पंचायत सचिव को दो से तीन पंचायतों की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है।
तकनीकी सहायकों की भी स्थिति कुछ हद तक ऐसी ही है। इसके अलावा, ग्राम रोजगार सहायकों की तैनाती न होने से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत चलने वाले कार्यों में भी रुकावट आ रही है।
राज्य में आर्थिक संसाधनों की कमी है, और यदि नई पंचायतों का गठन होता है, तो यह राज्य सरकार पर पंचायत घर बनाने, कर्मचारियों के वेतन और पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय का अतिरिक्त बोझ डालेगा। महत्वपूर्ण यह है कि केंद्र सरकार पंचायतों को विकास कार्यों के लिए जो ग्रांट देती है, वह पंचायतों की संख्या के बजाय आबादी के आधार पर तय होती है। हिमाचल प्रदेश की पंचायतों की औसत आबादी लगभग 1700 है, जो सामान्य से बहुत कम है। अगर नई पंचायतें बनाई जाती हैं, तो केंद्र से मिलने वाली ग्रांट और भी कम हो जाएगी, जिससे पंचायतों के विकास कार्य प्रभावित होंगे।